Verse: 10,25
मूल श्लोक :
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्।यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः।।10.25।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।10.25।।महर्षियोंमें भृगु और वाणियों(शब्दों) में एक अक्षर अर्थात् प्रणव मैं हूँ। सम्पूर्ण यज्ञोंमें जपयज्ञ और स्थिर रहनेवालोंमें हिमालय मैं हूँ।
।।10.25।। मैं महर्षियों में भृगु हूँ इसी अध्याय में बताये हुए सप्तऋषियों में भृगु ऋषि प्रमुख हैं। भृगु मनु के पुत्र माने गये हैं जो मानव धर्मशास्त्र का वर्णन करते हैं।मैं शब्दों में एकाक्षर ओंकार हूँ शब्द अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए ध्वनि के संकेतक हैं। एक वक्ता अपने मन के भावों को शब्दों के द्वारा व्यक्त कर उन्हीं भावों को श्रोताओं के मन में उत्पन्न करता है। इस प्रकार? टमाटर शब्द एक पदार्थ का संकेतक है? जिसके उच्चारण से टमाटर से परिचित लोगों के मन में समान आकार की वृत्ति उत्पन्न होती है। यदि वक्ता यह पाता है कि इस शब्द के उच्चारण से श्रोताओं को अर्थ का बोध नहीं हुआ है? तो फिर वह अनेक वाक्यों के द्वारा उस वस्तु का वर्णन करके अर्थ बोध कराता है। जिस सीमा तक वह वक्ता? टमाटर के रूप? रंग? स्वाद और अन्य गुणों के संबंध में श्रोता के मन में चित्र को स्पष्ट करेगा? उस सीमा तक श्रोताओं को उसके प्रतिपाद्य विषय का ज्ञान होगा। इस प्रकार? सामान्यत कोई भी भाषा ऐसे शब्दों से पूर्ण होती है? जो हमारे अनुभवों और विचारों को व्यक्त कर सकती है और अन्यों को बोध कराने में सहायक होती है।यदि सामान्य शब्द किसी लौकिक परिच्छिन्न वस्तु को दर्शाता है? तो ऋषियों ने एक ऐसे शब्द की कल्पना की जो नित्य वस्तु का सूचक या वाचक हो। वह शब्द है ? जिसे ओंकार या प्रणव भी कहते हैं। वेदमन्त्रों में प्रणवमन्त्र महानतम है तथा आध्यात्मिक जगत् में आज तक साधकों के ध्यान के लिए आलम्बन के रूप में इस शब्द प्रतीक का उपयोग किया जाता है।मैं यज्ञों में जपयज्ञ हूँ जप एक सार्वभौमिक आध्यात्मिक साधना है। किसी एक मन्त्र के जप की सहायता से साधक अपने मन में एक इष्ट देवता की अखण्ड वृत्ति बनाये रखता है। कर्म भक्ति या ज्ञान के मार्ग में भी साधक का प्रयत्न यही होता है कि मन में एक सजातीय वृत्ति प्रवाह बना रहे चाहे वह कर्मकाण्ड की पूजा के द्वारा हो या ध्यान साधना से। इस प्रकार? सभी साधनाओं में? किसीनकिसी रूप में? सजातीय वृत्ति की पुनरावृत्ति का अभ्यास किया जाता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि मन्त्र जप अपने आप में एक स्वतन्त्र साधना है? किन्तु किसीनकिसी रूप में वह अन्य साधन मार्गों का भी अन्तरतम केन्द्र है।इस प्रकार? यहाँ जपयज्ञ का प्रशंसा की गई है? क्योंकि वह सभी साधनों का केन्द्र होने के साथसाथ अपने आप में एक स्वतन्त्र साधन मार्ग भी है। अखण्ड आत्मस्मरण ही पूर्णत्व का अनुभव और बुद्धि की परम शान्तिसमाधि का क्षण है।मैं स्थावरों में हिमालय हूँ स्थावर का अर्थ है जड़? अचेतन वस्तु। पर्वत किसे कहते हैं मिट्टी और चट्टानें? पेड़ और पौधे? पशु और पक्षी जो प्रकृतिक शक्तियों के वैभव के साथ मिले होते है। जैसे सूंसूं आवाज करता हुआ तूफान? मेघों को चीर कर जाती हुई विद्युत्? शान्त घाटियों से गरजकर बहती जाती नदियाँ? शान्त झील और सरोवर? नील वर्ण आकाश व गिरि शिखरों को स्नेहपूर्वक अपने हृदयों में प्रतिबिम्बित करते निस्तब्ध जलाशय इन सबका संयुक्त रूप है पर्वत। भगवान् कहते हैं? समस्त पर्वतों में मैं हिमालय हूँ। निश्चय ही वह हिमालय को उसके विशेष गुण के कारण अधिक गौरव और दिव्य प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं। जग्ात् के सभी पर्वतों से सर्वथा विपरीत? भारत में? हिमालय के ऐसे गुप्त शिखर हैं? जहाँ बैठकर मनुष्य ने अपने विचारों की उड़ानों के द्वारा बुद्धि के परे तत्त्व का अनुभव करने के लिए अपने प्रयोग में वह सफलता पायी है? जो प्राणियों के इतिहास में उसके पूर्व किसी ने नहीं पायी थी।इससे भी सन्तुष्ट न होकर? भगवान् श्रीकृष्ण और अधिक उत्साह के साथ? अन्य सुन्दर उदाहरणों के द्वारा? अपने अनन्त वैभव को? सांसारिक बुद्धि के योद्धा मित्र अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं
English Translation By Swami Sivananda
10.25 Among the great sages I am Bhrigu; among words I am the one syllable (Om); among sacrifices I am the sacrifice of silent repetition; among the immovable things I am the Himalayas.