Verse: 10,16
मूल श्लोक :
वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः।याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि।।10.16।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।10.16।।जिन विभूतियोंसे आप इन सम्पूर्ण लोकोंको व्याप्त करके स्थित हैं? उन सभी अपनी दिव्य विभूतियोंका सम्पूर्णतासे वर्णन करनेमें आप ही समर्थ हैं।
।।10.16।। राजपुत्र अर्जुन को इस बात का निश्चय हो गया है कि भगवान् ही विश्व के अधिष्ठान हैं? जिनके बिना विश्व का अस्तित्व सिद्ध नहीं हो सकता। परन्तु जब वह अपने उपलब्ध और परिचित प्रमाणों इन्द्रियों? मन और बुद्धि के द्वारा बाह्य जगत् को देखता है? तब उसे केवल विषयों? भावनाओं और विचारों का ही अनुभव होता है जिन्हें किसी भी दृष्टि से दिव्य नहीं कहा जा सकता।जब किसी उत्सव के अवसर पर किसी इमारत पर विद्युत् की दीपसज्जा की जाती है? तब वहाँ विविध रंगों के तथा विभिन्न विद्युत् क्षमताओं के बल्बों से प्रकाश फूटकर निकल पड़ता प्रतीत होता है। परन्तु जब हमें बताया जाता है कि एक ही विद्युत् इन सबमें व्यक्त होकर इन्हें धारण कर रही है? तो कोई अनपढ़ अज्ञानी पुरुष? स्वाभाविक ही? प्रत्येक बल्ब में व्यक्त हुई विद्युत् को देखने की इच्छा प्रकट करेगा विराट् ईश्वर के रूप में भगवान् ही इस नामरूपमय संसार की समष्टि सृष्टि (विभूति) और व्यष्टि सृष्टि (योग) बने हुए हैं। यद्यपि श्रद्धा से परिपूर्ण हृदय के द्वारा इसे अनुभव किया जा सकता है? परन्तु बुद्धि के तीक्ष्ण होने पर भी उसके द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता। इसलिए? स्वाभाविक ही? अर्जुन भगवान् श्रीकृष्ण से उन विभूतियों का वर्णन करने का अनुरोध करता है? जिनके द्वारा वे इस जगत् को व्याप्त करके स्थित हैं। कर्मशील होने के कारण अर्जुन अत्यन्त व्यावहारिक बुद्धि का पुरुष था इसलिए वह और अधिक पर्याप्त तथ्यों को एकत्र करना चाहता था? जिन पर वह विचार करके और उनका वर्गीकरण करके उन्हें समझ सके।क्या अर्जुन की यह केवल बौद्धिक जिज्ञासा ही है? जिसके कारण वह ऐसा प्रश्न करता है वह स्वयं स्पष्ट करते हुए कहता है
English Translation By Swami Sivananda
10.16 Thou shouldst indeed tell, without reserve, of Thy divine glories by which Thou existest, pervading all these worlds. (None else can do so.)