Verse: 1,1
मूल श्लोक :
धृतराष्ट्र उवाच
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय।।1.1।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।1.1।।धृतराष्ट्र बोले (टिप्पणी प0 1.2) हे सञ्जय (टिप्पणी प0 1.3) धर्मभूमि कुरुक्षेत्रमें युद्धकी इच्छासे इकट्ठे हुए मेरेे और पाण्डु के पुत्रोंने भी क्या किया
।।1.1।। सम्पूर्ण गीता में यही एक मात्र श्लोक अन्ध वृद्ध राजा धृतराष्ट्र ने कहा है। शेष सभी श्लोक संजय के कहे हुए हैं जो धृतराष्ट्र को युद्ध के पूर्व की घटनाओं का वृत्तान्त सुना रहा था।
निश्चय ही अन्ध वृद्ध राजा धृतराष्ट्र को अपने भतीजे पाण्डवों के साथ किये गये घोर अन्याय का पूर्ण भान था। वह दोनों सेनाओं की तुलनात्मक शक्तियों से परिचित था। उसे अपने पुत्र की विशाल सेना की सार्मथ्य पर पूर्ण विश्वास था। यह सब कुछ होते हुये भी मन ही मन उसे अपने दुष्कर्मों के अपराध बोध से हृदय पर भार अनुभव हो रहा था और युद्ध के अन्तिम परिणाम के सम्बन्ध में भी उसे संदेह था। कुरुक्षेत्र में क्या हुआ इसके विषय में वह संजय से प्रश्न पूछता है। महर्षि वेदव्यास जी ने संजय को ऐसी दिव्य दृष्टि प्रदान की थी जिसके द्वारा वह सम्पूर्ण युद्धभूमि में हो रही घटनाओं को देख और सुन सकता था।
English Translation By Swami Sivananda
1.1 Dhritarashtra said What did my people and the sons of Pandu do when they had assembled
together eager for battle on the holy plain of Kurukshetra, O Sanjaya.